बादशाह फेकरूदिन जुमले इलाही का नगर भ्रमण।

बादशाह फेकरूदिन का नगर भ्रमण। बादशाह रूप बदलने की कला में पारंगत था। एक दोपहर बादशाह फेकरूदिन ने अपने राजसी वस्त्र मुकुट आदि उतारे और मनुष्य रूप धरकर पैदल पैदल राजधानी में यह जांचने निकला कि डिजिटल क्रांति कहां तक पहुंची मनुष्य रूप में वह कहीं से भी राजा नहीं लगा जैसे राजा के रूप में वह कहीं से भी मनुष्य नहीं लगता था। कोतवाल का रूप वह अपने राज्य की कानून व्यवस्था देखने कभी कबार कोतवाल का रूप धरकर भी निकलता या, उसकी वर्दी बातचीत का ढंग पीनल कोड की समझ रोब दाब अभद्र भाषा सब असली कोतवाल जैसे होते थे बादशाह कोतवाल की ऐसी नकल करता था कि असली कोतवाल बगल में खड़ा कर दिया जाता तो असली कोतवाल नकली लगता । कहीं अपराध होने की सूचना मिलती तो घटनास्थल पर देरी से पहुंचता और लेश मात्र भी संवेदनशीलता नहीं दिखाता लोगों को पक्का विश्वास रहता कि कोतवाल साहब समय के पाबंद हैं और संवेदनाशील नही इसका मतलब है कि वो असली कोतवाल साहब है। साधारण आदमी का रूप बादशाह ने मनुष्य रूप धरे घूमते हुये मनुष्यों पर डिजिटलाइजेशन का गजब का असर देखा सब लोग ऐसा व्यवहार करते ...