बादशाह फेकरूदिन जुमले इलाही का नगर भ्रमण।
बादशाह फेकरूदिन का नगर भ्रमण।
बादशाह रूप बदलने की कला में पारंगत था।
एक दोपहर बादशाह फेकरूदिन ने अपने राजसी वस्त्र मुकुट आदि उतारे और मनुष्य रूप धरकर पैदल पैदल राजधानी में यह जांचने निकला कि डिजिटल क्रांति कहां तक पहुंची
मनुष्य रूप में वह कहीं से भी राजा नहीं लगा जैसे राजा के रूप में वह कहीं से भी मनुष्य नहीं लगता था।
कोतवाल का रूप
वह अपने राज्य की कानून व्यवस्था देखने कभी कबार कोतवाल का रूप धरकर भी निकलता या,
उसकी वर्दी बातचीत का ढंग पीनल कोड की समझ रोब दाब अभद्र भाषा सब असली कोतवाल जैसे होते थे
बादशाह कोतवाल की ऐसी नकल करता था कि असली कोतवाल बगल में खड़ा कर दिया जाता तो असली कोतवाल नकली लगता ।
कहीं अपराध होने की सूचना मिलती तो घटनास्थल पर देरी से पहुंचता और लेश मात्र भी संवेदनशीलता नहीं दिखाता लोगों को पक्का विश्वास रहता कि कोतवाल साहब समय के पाबंद हैं और संवेदनाशील नही इसका मतलब है कि वो असली कोतवाल साहब है।
साधारण आदमी का रूप
बादशाह ने मनुष्य रूप धरे घूमते हुये मनुष्यों पर डिजिटलाइजेशन का गजब का असर देखा
सब लोग ऐसा व्यवहार करते दिखे जैसे उनमें कोइ प्रोग्राम फीड हो और कोई उन्हें माउस से संचालित कर रहा हैं ।
राजधानी के बड़े चौक चौराहों पर प्रदूषण सूचकांक दर्शाने वाले स्वचालित डिस्प्ले बोर्ड लगे मिले ताकि नागरिक प्रदूषण घटने पर तुरंत बढ़ाकर मेंटेन करते रहे ।
वह दो चार सरकारी दफ्तरों में घूमा डिजिटल क्रांति की प्रगति देखकर उसे हार्दिक तसल्ली हुई कि रिश्वत ऑनलाइन भी ली जा रही थी।
उसने देखा कि कई बैंक खाताधारक अपने खातों से जालसाजों द्वारा ऑनलाइन रकम निकालने की शिकायत दर्ज कराने कोतवाली के दरवाजे पर खड़े थे उसे दुख से अधिक खुशी हुई कि डिजिटलाइजेशन उत्तरोत्तर परिणाम दे रहा था कि कोई भी कहीं से भी किसी का भी किसी भी बैंक में जमा धन आसानी से निकाल रहा था, वरना एक समय ऐसा था कि लोगों के अपने ही बैंक जाकर अपना ही धन निकालने में पसीने छूट जाते थे।
यह देख कर तो वह झूम ही उठा कि कोतवाल भी पीडितों को ऑनलाइन शिकायत करने का आदेश देकर भगा रहा था।
डिग्री धारक छात्र का रूप
बादशाह के पास उच्च शिक्षा के बिना परीक्षा के लिए हुई डिग्री थी उसने बाजार में परीक्षाओं में नकल करने के एक से एक उपकरण देखें तो उसका मन हुआ कि क्यों न उच्च शिक्षा की एक डिग्री परीक्षा देकर भी ले ली जाए ,लेकिन वह यह सोचकर आगे बढ़ गया कि राजा बनने के लिए किसी डिग्री की जरूरत नहीं होती और राजा बनने के बाद हर डिग्री ली जा सकती है
बादशाह आवासीय बस्ती में पहुंचा श्याम गहरा चुकी थीउसे एक घर की रसोई से धुआं उठता दिखा उसने घर के मालिक को बुलाकर नाराजगी जाहिर की। और कहाँ "डिजिटल युग में भी खाना ऑनलाइन नहीं मंगाते हो"गृहस्वामी ने उसे बिना पहचाने कहा दाल चावल ऑनलाइन ऑर्डर किए थे डिलीवरी बॉय ले भी आया था लेकिन दाल चावल के एक भी दाने पर महापराक्रमी बादशाह की फोटो नहीं दिखी तो मैंने फूड पैकेट लौटा दिया।
गृहस्वामी की राज भक्ति से प्रसन्न हो बादशाह फेकरूदिन ने वहीं खडे खडे राजकोष से उसके बैंक खाता में एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएं ऑनलाइन ट्रांसफर की और डिजिटल क्रांति पर गर्व करता हुआ राजमहल लौट आया।
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